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________________ गृहस्थ देशना विधि : १२६ मतः अंतमें जिसके तत्त्व शुद्ध व सत्य हो वही धर्म सत्य हैं ऐसा सिद्ध हुआ । कष व छेदके फलका आधार तापशुद्धि रूप धर्मके गंभीर तत्त्वों पर रहा हुआ है । कष व छेद फल देनेवाले हो तो ही सत्य गिनना नहीं तो- अन्यथा याचितकमण्डनमिति ||४३|| (१०१) मूलार्थ - नहीं तो वे मांगे हुए आभूषणोंकी तरह हैं ॥४३॥ विवेचन-अन्यथा - फल रहित हों तो, याचितकमण्डनम् - मांगे हुए आभूषण । यदि कृष व छेद उपरोक्त फल देनेवाले न हो तो वस्तु परीक्षा के अधिकारमें गिने जाने पर भी वे माग कर लाये हुए आभूषणोकी तरह हैं। उनमें परकीयत्वकी ( परायेपनकी) संभावना होती है अतः मांगा हुआ कुत्सित ( बुरा ) होता है । कडा कुंडलादि आभूषण विशेष जो मांग कर लाये हुए हो उस तरह जानना । यथार्थ तत्त्वो पर रचित विधि निषेध मार्ग तथा सहायक शुद्ध क्रिया सफल होती हैं, नहीं तो मार्ग व क्रिया मागे हुए आभूषणों की तरह हैं। आभूषणोंका फल दो प्रकारका है-यदि निर्वाह ठीक चलता हो तो शुद्ध - अभिमान जनित सुख उत्पन्न करनेवाला शरीरको शोभा देनेवाला है । कदाचित् किसी रीतिसे निर्वाहका अभाव हो तो उससे ही निर्वाह किया जा सकता है अर्थात् उसे बेच कर काम चलाया जा सकता है। मांगे हुए आभूषणोंमें ये दोनों नहीं होते । वे मांगे हुए तथा पराये हैं ।
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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