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________________ गृहस्थ देशना विधिः ८५ बातें हैं याने “ भैंसके सामने भागवत " वाली बात है । अर्थात् वह निष्फल जाती है अत' इच्छा उत्पन्न करना चाहिये । तथा - भूयोभूय उपदेश इति ॥७॥ (६५) मूलार्थ और बार बार उपदेश करना चाहिये ||७|| विवेचन - यदि श्रोताको बोध शीघ्र न हो तो बार बार उपदेश करते रहना चाहिये। जैसे सन्निपातके रोग में तिक्तादि काथ पिलानेका उपचार बार बार किया जाता है जब तक कि सन्निपात न मिटे | उसी तरह जब तक धर्मशास्त्रकी बात श्रोताके हृदयमें न जमे बार चार उपदेश देना ही चाहिये । उमास्वाति कहते है कि - जैसे जहर उतारनेमे वार चार मन्त्रोचारमें पुनरुक्ति दोष नहीं है वैसे ही व्याख्यानमें भी । तथा - बोधे प्रज्ञोपवर्णनमिति ||८|| (६६) मूलार्थ - बोध होने पर उसकी बुद्धिकी प्रशंसा करे ||८|| विवेचन - एक बार या बार बार उपदेश करने पर जब श्रोताको बोध हो, शास्त्रकी बात हृदयंगम हो तो उसकी इस प्रकार प्रशंसा करे - " दीर्घकर्मी ( भारे कर्मी ) प्राणी ऐसी सूक्ष्म बातोंको समझने में असमर्थ होते है । जो लघुकर्मी ( अल्पकर्मी ) हैं वे ही ऐसी सूक्ष्म वाते समझ सकते है, सुननेकी रुचि होना भी पुण्योदयसे होती है अतः ध्यान देकर सुनो आदि भी बढ़ता है 1 कहने से उसका उत्साह भ
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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