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अशुद्धम्
पत्रम्
पृष्ठम् पङ्क्तिः
अशुद्धम् नत्व
शुद्धम्
पत्रम्
पृष्ठम्
पक्तिः
चति
वेति ११२
नन्वञ्
भवो
भवः
१५ अभि
अपि विपये
ज्य:
१८ | विपे
गरिकः
निपस
निवस चरण ( चणक)
ऋद्यजि
KARNATANAMwcanemierrecene
नाक
देश
गारिक: १४१॥ ऋज्यजि नारक ऽल्प तत्
अणीय पुरोडाशिका, पुरोडाशिकी,
पोतकम् स्यात्
marewerAmarwaccMMeanina
ऽल्य
कवित्
कचित्
। तत्
वेत
अणाय
प्रयुक्त
प्रयुक्तं
पुरोडाशिकी
प्रति
पतृकम्
स्यात
१० | तव
नरणा
'ऋणा हास्ति
१९ | भवो ३ | पाणविकः ५/ विपय
एवं पाणविकः विपये