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मनाही नहीं है। प्रत्येक मनुष्य स्वशी से जैनधर्म !
को धारण करसकता है। । जैनशास्त्रों और इतिहासके देखनेस यह बात बिल्कुल साफ, होजाती है और इस विषय में कोई सन्देह बाकी नहीं रहता है कि,मेशा से प्रत्येक जातिके मनुष्यने इस पवित्र जैनधर्मको धारण करके बही भक्ति और मावके साथ इसका पालन किया है।
देखिये, क्षत्रिवलोग पहिले अधिकतर जैनधर्मका ही पालनकरते। थे। इस धर्म से उनको विशेष अनुराग और प्रीति थी। वे जगतका और अपनी प्रात्माका कल्याण करनवाला इसी धर्मको समझतथे।। हजारो और लाखा ऐसे गजा हाचुके हैं, जो जैनी थे या जिन्हाने । जैनधर्म की दीक्षा धारणकी थी खासकर मार जितने तीर्थकर हुए, है,बे सबही क्षत्रियथ। इस समय भी जैनियो में बहुत से जैनी ऐसे हैं। जो क्षत्रियों की संतानमेसे हैं परन्तु उन्होंने क्षत्रियों का बर्म छोड। कर वैश्यका कर्म अंगीकार कर लिया है, इसलिये वैश्य कहलाते हैं। । इसी प्रकार ब्राह्मण लोग भी पाहले जैनधर्म को पालन करते थे।
और इस समय मी कही २ सैकडो ब्राह्मण जैनी पाए जाते हैं। जिस समय भगवान ऋषभदेवके पुत्र भरत चक्रवर्ती ने क्षत्रिय लोगों की परीक्षा लेकर जिनको अधिक धर्माता पाया, उनका एक ब्राह्मण वर्ण स्थापित किया था,उस समय तो ब्राह्मण लोग गृहस्थी जैनियों के पूज्य समझ जाते थे और बहुतकाल तक बराबर पूज्य बने रहे। परन्तु पछिसे जब वे स्वच्छंद होकर अपने धर्मकर्म मे शिथिल होगये।
और जैनधर्मले गिरगये तब जैनियोंने माम तौरले उनकापूजना और मानना छोडदिया । परन्तु फिर भी इस ब्राह्मणवर्ग में बराबर जैनी