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AAPLAIMUM
होती हे।हमारे परमपूज्य गौतम गणधर,माबाहु स्वामी, अकलकम
और विद्यानंदी माविक बहुतसे प्राचार्य ब्राह्मणही थे, जिन्होंने चार जैनधर्म का डंका बजाकर जगतक जीवोंका उपकार किया है। यह वैश्य डोग सो के मी जैसे इस वक्त जैनधर्म को पालन करते हैं, वैसे ही पहले पालन करते थे। एसी हो हालत शूद्रों की है, वेमी कमी जैनधर्म को धारण करने से नहीं चूके और ग्यारहवीं प्रतिमा के धारक क्षुल्लक तक हाते रहे। इस वक्तमी जैनियों में शद्र जैनी। मौजूद हैं। बहुत से जैनी गद्रोंका कर्म (पेशा ) करते हैं और ह.. क्षिणकी दो एक जातियां जिनमें कि विधवा विवाह होताहै मुनते । है कि शद्रोही में परिगणित हैं और शनही क्यो हमारे पूर्वज । तीर्थकरो और ऋषियों मुनियोंने तो चांडालो, भीलो और मोच्छो, तको जैनधर्म का उपदेश देकर उनको जैनी बनाया है, और न केवल जैनधर्मका श्रमान उनके दृदयों में उत्पन्न किया है बल्कि श्रावक के व्रतभी उन से पालन कराये हैं जिनकी मैकड़ों कथाएं शास्त्र में मौजूद हैं। __हरिवंशपुराण में लिखा है कि, एक त्रिपद नामके घीषर (कहार ) की। लड़की को जिसका नाम पूतगधा था और जिसके शरीर से दुर्गन्ध मातीची श्रीधमाधगुप्त मुनिने श्रावक के व्रत दिये और वह लडकी ! बहुत दिनोतक माथिकानों के साथ रही और अन्त में सन्यास धारण करके मरी तथा सोलहवें स्वर्ग में जाकर देवोहुई, फिर यहां से भाकर श्रीकृष्णको पटरानी क्मिणी हुई।
सम्पापुर नगर में अनभूत मुनिने अपने गुरु सूर्यमित्र मुनिराज की भावास एक डालकी लड़की को, जो जन्म संधी पैदा
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