________________
हाथीगणोखो पानी।सो पीवैगजपतिज्ञानी। देख बिन पवन राखै । तन पानी पंक न नाख। निजशील कभीनहिं खोवा हाथिनी दिशभूल न जो उपसर्गसहप्रति भारी। दुर्यान तजे दुखकारी॥
प्रयके भय अंगन हालीदृढ धीर प्रतिज्ञा पाल। - चिरला दुदरतपकीनोबिलहीनभयोतनछीनो ।
परमेष्टि परमपद ध्यावे ऐसे गज काल गमावे।। एक दिनअधिकतिखायो।तब वेगवतीतट प्रायो। जलपीवन उधम कीधोकादोद्र कुंजर बीघो। निश्चय जब मरण विचारोसन्यास सुधी तब धारो
इससे साफ प्रकट है कि मच्छ। निमित्त मिलजाने और शुमार का उदय माजाने से पशुमो में भी मनुष्यता प्राजाती है और थे। मनुष्योंके समान धर्मका पालन करने लगते हैं । क्योंकि द्रव्यत्व की अपेक्षा सब जीव चाहे वे किसी भी पर्याय में क्यों न हो, मापस में बराबर हैं। यही हाधीका जावजैनधर्मके प्रसादसे इस पशुपर्यायको छोड़करबारहवे स्वर्गमे देवहुआ और फिर उन्नतिके सोपानपर चढ़ता कुछ ही जन्म लेनेके पश्चात् हमारा पूज्य तीर्थकर श्रीपानाथ दुभा।। इसी तरह और पातसे पराभोंने जैनधर्मको धारण करके अपनी आत्माका कल्याण किया है । जब पशुबोतकने जैनधर्मको धारण किया है, तब फिर मनुष्योंका तो कहना ही क्या है तो सर्व प्रकारले इसक योग्य और दूसरे जीवोको इस धमे लगाने वाले ठहरे । वास्तवमै यदि पूछा जाय, तो किसी भीदेश जातिया वर्णके मनुष्यको इस धर्मके धारण करने की कोई
-
S
...