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________________ अपनी वशवर्तिनी राजीमतीसे बोले, "हे सुमुखी, तू इस मोहको छोड दे और श्रेष्ठ धर्मको धारण कर; कि जिसके स्मरणसे विशुद्ध चित्तवाले जीव दुःखको छोडकर ससारसे मोक्षमें जा पहुचते हैं।" धर्म समाचर नितम्बिनि यत्प्रभावा__ जीवा प्रकाशधिषणाश्च सितोदरेभ्यः / हसोजसो मघवभूतविभूतयोग्त्र __मा भवन्ति मकरध्वजतुल्यरूपाः" // 45 // "हे नितम्बिनि, धर्मको भले प्रकार आचरण कर; जिसके कि प्रसादसे जीवोका ज्ञान विकसित होना है, बगुला भी हस सरीखी कान्तिवाले हो जाते है और मनुष्य इन्द्र जैसी बडी भारी विभूतिके स्वामी होकर कामदेवके समान सुन्दर रूपवान् हो जाते है / " तद्वत्परत्र सुविचित्रसुपर्वसौधा नुद्वास्य तानि विलसन्ति सुखानि साधु / सिद्धेश्च सिन्धुरगते शुभशर्मभाज " सद्यः स्वय विगतबन्धभया भवन्ति" // 46 // " इसी प्रकारसे परलोकमें देवोके आश्चर्यकारी महलोंको अधिकृत करके वहाके सुखोंको भले प्रकारसे भोगते हैं, तथा हे गजगामिनी, शीघ्र ही मोक्षको भी प्राप्त कर लेते है, जिसमें कल्याणरूप अनन्त सुखके भोक्ता होकर कर्मबंधके भयसे रहित हो जाते हैं।" बन्धूनिवन्धननिभान्विषयान्विषामानर्थाननर्थनिवहानिव हा विमूढे
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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