________________ उज्जृम्भते हृदयपङ्कजमुजहाति म्लानिं वपुः फलति कामितकल्पवृक्षः। नश्यन्त्यशेषविपदश्च वियोगदुःख "त्वत्कीर्तनात्तम इवाशु भिदामुपैति' // 42 // आपका कीर्तन करनेसे अर्थात् आपके गुणोंका गान करनेसे हृदयकमल खिल उठता है, शरीर मलिनताको छोड देता है-निर्मल हो जाता है, मनास्थरूपी कल्पवृक्ष फल जाता है, सारी विपदाएँ नष्ट हो जाती है, और वियोगरूपी दुःख अन्धकारके समान शीघ्र ही नाशको प्राप्त हो जाता है। कल्याणकल्पकमलाविमलाशयत्व सौभाग्यभाग्यसुतसातियशोजुपानि / सद्यः फलानि सकलानि जना जिनेश "त्वत्पादपङ्कजवनाश्रयिणो लभन्ते" // 43 // हे जिनेश, आपके चरणकमलरूपी वनका आश्रय लेनेवाले पुरुष कल्याणरूप लक्ष्मी, निर्मल अभिप्राय, सौभाग्य, भाग्यवान् पुत्र, दान और यश आदि सारे इष्ट फलोको तत्काल ही प्राप्त करते है। नेमिर्जगावथ वशां स्मरविक्लवां तां मोहं परित्यज विधेहि वृष वरेण्यम् / निःश्रेयसं सुमुखि यस्य विशुद्धचित्ता "स्त्रास विहाय भवतः स्मरणारजन्ति" // 44 // इसके अनन्तर श्रीनेमिनाथ भगवान् उस कामविकला और