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________________ दोनों ही अवस्थाओंमें मै आपके शरणमें रहगी, जिससे कोई भाक्रमण नहीं कर सके। रुष्टोऽपि देव रमणः प्रमदां परामि भूतां समुद्रविजयात्मज पाति सम्यक् / यद्विप्रयोगदहनं मदुरो दहन्तं "त्वनामकीर्तनजलं शमयत्यशेषम् " // 40 // हे समुद्रविजयात्मज, अर्थात् हे नेमिकुमार, जैसे रूठा हुआ भी पति दूसरोंसे सताई हुई अपनी स्त्रीकी अच्छी तरहसे रक्षा करता है, उसी प्रकारसे यह वियोग आग जो मेरे हृदयको जला रही है, उसे हे देव, आपका नामकीर्तनरूपी जल शमन कर देवे / अर्थात यद्यपि आप रुष्ट है, तो भी इस अग्निसे आपको मुझे बचा लेना चाहिये। दष्टा मनोजभुजगेन मुहुर्जपन्ती नामापि ते कथमहो गतचेतना स्याम् / अन्यो भवत्सपदि सुन्दर निर्विषश्चेत् "त्वन्नामनागदमनी हृदि यस्य पुंसः" // 41 // हे सुन्दर, कामदेवरूपी सांपकी डसी हुई मैं आपका नाम वारवार जप रही हू, तो भी चेतनाहीन क्यों हो रही हू? यह कामसर्पका विष क्यों नहीं उतर जाता ? क्योंकि जिनके हृदयमें आपकी निर्विष हो जाते है।
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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