________________ प्राणनाथ, विधातान मेरे इस लिलाटपर जो बुरे अक्षर लिख दिये है, उन्हें मिटानेके लिये आपके विना, अक्षरोके स्वभावको उलटपलट कर देनेवाला और कौन पुरुष समर्थ हो सकता है। अर्थात् मेरी होनहारको बदल सकते है तो आप बदल सकते है, दूसरा कोई ऐसा सामर्थ्यवान् नहीं है / पद्माकर तमवदातजल विलोक्य चेतो भविष्यति रतिप्रसित तवापि / स्वप्रेयसीरतिरतास्तलिनोपमानि “पद्मानि तत्र विबुधाः परिकल्पयन्ति" // 36 // अपनी द्वारिकानगरीमें जो निर्मल जलके भरे हुए सरोवर है, उन्हें देखकर आपका चित्त भी रतिक्रीडा करनेमें आसक्त हो जायगा। क्योंकि उन सरोवरोंमे अपनी प्यारी प्रमदाओकी रतिमें लवलीन हुए देवगण शय्याके समान ( सफेद ) कमलोंकी रचना करते है। भाव यह है कि, जो स्थान देवोको भी रतिका कारण है, वह आपके लिये क्यों नही होगा? प्राक्पूर्बभौ यदुविभो भवता यथालं नैवं तु सम्प्रति महोज्ज्वलराजभिस्तैः / याहग्महः स्फुरति शीतकृतःक्षपायां ताडक्कुतो ग्रहगणस्य विकाशिनोऽपि // 37 // हे यदुवशियोके स्वामी, वह द्वारकानगरी पहले आपके कारण जैसी सोहती थी, वैसी अब बड़े कान्तिमान् राजाओंसे भी नहीं