________________ किसी समुद्रको पीनेकी अब इसकी इच्छा नहीं है / इस लिये है नाथ, बतलाइये अब मैं क्या करूइस वियोगसमुद्रमें मग्न होते हुए मैने आपका आश्रय लिया है। आपको नमस्कार है। हे जिन, आप मेरे इस समुद्रको शोषण करनेके लिये हूजिये अर्थात् इस वियोगसमुद्रको सोख लीजये / भाव यह कि, मेरे वियोगसमुद्रको अगस्त्य तो अब सोखेगा नहीं, क्योकि वह तो सब समुद्रको पीकर तृप्त हो गया है / अब केवल आप ही इसके सोखनेवाले है। धन्या विभो युवतयः खलु तास्तमायां यासां समेति सपदीक्षणयोः प्रमीला / धिग्मां जहात्यहह सा विगता यतस्त्वं "स्वप्नान्तरेऽपि न कदाचिदपीक्षितोऽसि // 27 // हे विभो, रातको जिनके नेत्रोंमे शीघ्र ही तन्द्रा आ जाती है, उन स्त्रियोंको धन्य है / परन्तु हाय' मुझे धिक्कार है, जो वह तन्द्रा मुझे नहीं आती है और इसलिये मैं आपको कभी स्वप्नमे भी नहीं देखती हू / यदि थोडी बहुत आंख लगे, तो स्वप्नमें तो आपको देख लिया करू। दृष्टं विवाहसमये क्षणसंमदाय प्रोद्यत्प्रभाप्रसरमीश मुखं तवाभूत् / नीतं तदैव विधिना तददृश्यतां हि “विम्ब रवैरिव पयोधरपार्ववर्ति" // 28 // हे स्वामी, विवाहके समय देखा हुआ जो आपका प्रकाशमान्