________________ संसारसारमृषयः कथयन्ति रामां प्राप्तां कथ त्यजसि तां खकुलानुरूपाम् / एवं विमुच जडतातिशयं यतस्त्वां __ "शानस्वरूपममल प्रवदन्ति सन्तः" // 24 // ऋषि मुनि लोग स्त्रीको ससारका सार बतलाते है / फिर आप उसे अपने कुलके योग्य प्राप्त करके भी क्यो छोडते है ? अब आप इस अतिशय मूर्खपनेको छोड दीजिये। क्योंकि आपको सन्त पुरुष निर्मल ज्ञानस्वरूप कहते है। प्रामोऽसि नीतिनिपुणोऽसि गुणाकरोसि दातासि भो सकलसत्त्वशिकरोऽसि / महाञ्छितं कुरु विभो बहु किं स्तवीमि "व्यक्तं त्वमेव भगवन्पुरुषोत्तमोऽसि"॥२५॥ हे विभो, आप पडित है, नीतिमे चतुर है, गुणोकी खानि है, दाता हैं, सर्व जीवोंका कल्याण करनेवाले है, और अधिक स्तुति क्या करू, आप ही प्रगटरूप पुरुषोत्तम है / इसलिये मेरे मनोरथको पूर्ण कीजिये-मुझे स्वीकार कीजिये / पीताब्धिरेष जलधीनिखिलानिपीय सौहित्यमाप वद सम्प्रति किं करोमि। मग्ना वियोगजलधौ शरण श्रिता ते "तुभ्यं नमो जिनभवोदधिशोषणाय" // 26 // यह अगस्त्य तो सारे समुद्रोंको पीकर तृप्त हो गया है-अन्य