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________________ मै क्या कहू, रातको चन्द्रमाके कर (किरणें) मेरे शरीरको सब ओरसे स्पर्श करते है-मेरा आलिगन करते है / परन्तु हे विभी, क्या किया जाय ? पतिके दूर रहनेपर पराई स्त्रियोंमें आसक्त रहनेवाले पुरुषोंको स्वच्छन्दतापूर्वक सचार करनेसे कौन रोक सकता है। पूर्व मया सह विवाहकृते समागा मुक्तिस्त्रिया त्वमधुना च समुद्यतोऽसि / चेचञ्चलं तव मनोऽपि बभूव हा तत् _ "किं मन्दरादिशिखरं चलितं कदाचित्" // 15 // हे नाथ, पहले तो आप मेरे साथ विवाह करनेके लिये आये थे, और अब आप मुक्तिस्त्रीके विवाह करनेके लिये उद्यत है! यदि आपका मन भी इस तरह चचल हो गया, तो क्या सुमेरुपर्वतका शिखर भी कभी चला होगा ? पर्यसुन्दरतरे ज्वलितप्रदीपे कीर्णप्रसूननिवहे शयनीयगेहे / एका शये कथमहं यदि वृष्णिवंश __"दीपोऽपरस्त्वमसि नाथ जगत्प्रकाशः" // 16 // जिस शयनमन्दिरमे अतिशय सुन्दर पलग बिछ रहा है, सुगन्धित फूल बिखरे हुए है और दीपक जल रहे है, उसमें जगतके प्रकाश करनेवाले यदुवशके दीपक यदि एक आप नहीं है, तो प्यारे, बतलाओ, मै अकेली कैसे सोऊ
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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