________________ कान्त्या कुलेन वयसा सुगुणैश्च तैस्तै स्तुल्यामिमां तव वृणीष्व कुशाग्रबुद्धे / प्राप्नोति शं स खलु दारजनं जिनेश "भूत्याश्रितं य इह नात्मसम करोति" // 10 // सुन्दरता, कुलीनता, जवानी, तथा और और भी गुणोंमें जो आपके समान है ऐसी इस दासीको, हे कुशाग्रबुद्धे, (हे चतुर) ब्याह लीजिये - स्वीकार कर लीजिये / क्योकि हे जिनेश, इस ससारमें जो पुरुष अपना आश्रय करनेवाली स्त्रीको निज विभूतिसे अपने समान कर लेता है, वह निश्चयसे सुखको प्राप्त होता है। गोरोचनारुचिरगौरतराङ्गयष्टि मेनां विहाय कथमाचरलि व्रतं भोः / त्यक्त्वा सुधारसमहो वत भाग्यलभ्यं "क्षारं जलं जलनिधेरसितुं क इच्छेत् // 11 // हे प्रभो, गोरोचनके समान सुन्दर और अतिशय गौरागी इस दासीको छोडकर आप व्रत क्यों धारण करते हैं ? अहो भाग्यसे प्राप्त हुए अमृतको छोडकर ऐसा कौन है, जो समुद्रके खारे पानीके पीनेकी इच्छा करता है ? एणे दृशौ शशधरे बदन दिनेशे पश्यामि धामनिलयं गमनं गजेन्द्र। हा किं करोमि हृदयेश वतैकसंस्थं यत्ते समानमवरं न हि रूपमस्ति // 12 // हे हृदयेश्वर, मै हरिणमें आपके दोनों नेत्र, चन्द्रमामें आपका