________________ हे सखे, जिसमें भुजलताओसे लपटाहुआ अतिशय गाढ आलिगन और परस्पर मुखचुबन होगा, तुम्हारे उस यथेच्छ समागमसे वियोगरूपी दुःख इस तरह विलीन हो जायगा, जिस तरह रातका अन्धकार सूर्यकी किरणोसे नष्ट हो जाता है। भाग्योदयात्तदिन मे दिनमेत्वहो नौ यस्मिन्मिथो मिलितयोः सुरतश्रमोत्थः / वक्षःस्थले विहितहारविशेषशोभो "मुक्ताफलद्युतिमुपैति ननूदविन्दु " // 8 // हे स्वामी, भाग्यके उदयसे मेरे लिये वह दिन कब आवै, जब अपन दोनोके परस्पर मिले हुए जोडेके सुरतक्रीडाके श्रमसे निकले हुए पसीनेके बिन्दु वक्ष स्थलमे पहने हुए हारकी शोभाको बढ़ाते हुए मुक्ताफलोंकी (मोतियोकी) प्रभाको धारण करे / नेत्रामृते सुहृदि नाथ निरीक्षितेऽपि हृष्यन्ति यद्भुवि विशोऽत्र किमद्भुतं तत् / मित्रोदयेऽपि च भवन्ति विचेतनानि “पद्माकरेषु जलजानि विकाशभाजि" // 9 // हे नाथ , आप नेत्रोको अमृतके समान लगनेवाले प्यारे मित्र हैं / इसलिये यदि आपके देखनेसे इस पृथ्वीके मनुष्य हर्षित होते है, तो इसमे आश्चर्य ही क्या है ? सरोवरोंके कुम्हलाये हुए कमल मित्रके अर्थात् सूर्यके उदय होनेपर ही विकसित होते हैं-खिल उठते है।