________________ "तदनन्तर उससे उसकी सखियोंने दयावान् होकर कहा, है नितम्बिनि! चित्तको स्थिर कर, विषाद मत कर / हे चकोरके समान चचल और चमकते हुए नेत्रोंवाली सुन्दरी, तेरे लिये पहले हम ही श्रीनेमिनाथसे प्रार्थना करती है " / सम्पूर्णचन्द्रवदनां मदनावतार रामां विहाय नवयौवनचारुवेषाम् / वृद्धोचितं वयसि संयममुग्रमेन _ "मन्यः क इच्छति जनः सहसा गृहीतुम्" // 3 // "हे कामदेवके अवतार, इस नवीन यौवन और सुन्दर वेषवाली तथा पूर्णचन्द्रके समान मुखवाली स्त्रीको छोडकर जवानीकी उमरमे भला इस वृद्धावस्थाके योग्य कठिन तपको और कौन मनुष्य है, नो सहसा धारण करनेकी इच्छा करै ? अर्थात् इस अवस्थामे लोग स्त्रीको ही ग्रहण करते है तपको नहीं।" स्वामिन् प्रसीद मृगबालविलोलनेत्रा मङ्गीकुरुष्व दयितामविलम्बमेनाम् / अस्मिन्नवे वयसि नाथ वियोगरूपं "को वा तरीतुमलमम्बुनिधि भुजाभ्याम्" // 4 // " हे स्वामी, प्रसन्न हूजिये और शीघ्र ही इस छोटी हरिणीके समान चचल नेत्रोंवाली सुन्दरीको अगीकार कीजिये / हे नाथ, इस नई उमरमे वियोगरूपी समुद्रको ऐसा कौन है, जो अपनी भुजाओंसे तरनेमें समर्थ हो? अर्थात् आप और राजीमती दोनोंसे यह वियोग सहन नहीं होगा।"