________________ (48) समयानुकूल दान करें / समताभावसे पर्युषण पर्वमें अपना जीवन व्यतिक्रम करें। विभावोंको त्याग स्वभावकी ओर झुकें तब कहीं पर्युषण पर्व सच्चा पर्व होसकता है और उसका उपयोग हो सकता है। हम अहैतदेवसे प्रार्थी है कि भगवान हमारे भाई सच्चे जैन-क्रोधादिकषायोंको जीतनेवाले बनें और इस तरह के बननेका अभ्यास वे पर्युषण पर्व में करके अपना जीवन पवित्र बनावें / पर्युषण पर्वमें जैनी मात्रके कर्तव्य / (1) सच्चे जैनी अर्थात् जीतनेवाले ( क्रोधादि विभावोंको ) योद्धा बनना। ( 2 ) क्षमारूप-शात रहना। ( 3 ) अभिमानको छोडना। ( 4 ) सत्यविश्वास, सत्यज्ञान और सत्यचारित्र रूप स्वभावका विकाश करना, इनके साधनोंका उपयोग करना / (5) पठनपाठन करना। ( 3 ) शास्त्रदान और विद्यादानके लिये अपनी सपत्तिका त्याग करना ( दान देना) (7) परोपकार करना। (8) हिंसा. झूठ, चोरी कुशील, तृष्णादिसे बचते रहना / (9) सामाजिक और धार्मिक उन्नतिके कार्योंमें योग देना / ( 10 ) अज्ञान अधकारको हटाकर सत्यमार्गकी प्रभावना करना इत्यादि।