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________________ (47) योंको काम में लाते हैं। मंदिरोंमे प्रायः इन दिनों सब भाई एकत्रित होते है वहाँपर तत्वचर्चा सामाजिक अवनतिके कारणोंपर विचार न कर आपसमें लडते हैं झगडते है, जते पेजार करते है, यहाँ तक कि एक दूसरे की पगड़ी सड़कोंमें फेंक कर संतोषित होते हैं। हाय, कितने दुख की बात है कि जो पर्युषण पर्व हमें क्षमादि उत्तम गुणोंका अभ्यास करानेके लिये है जिसमें हम दर्शनविशुद्धिकी भावनासे आत्माका उच्चातिउच्च विकाश कर सकते हैं उसी पर्युषण पर्वमें हम उक्त वृणित कृत्योंके करने पर भी नहीं शर्माते / सबसे अधिक दुःख तो तब होता है कि जब शास्त्र सभामें बैठकर क्षमादि धर्मका वर्णन सुनते समय गर्दनको हिला हिलाकर अपनी भावुकता प्रगट करनेवाले पापात्मा थोडेसे अपमानसे-कटुकवचनसे लाल ताते होकर साक्षात क्रोध मूर्ति बन जाते है और उन कृत्योंको भी करते नहीं लनाते जो कमसे कम मंदिरोंमें तो नहीं करना चाहिये। पर्युषण पर्वमें रात्रि दिन आत्मामें समताभाव, क्षमाभाव धारण कर बारह व्रतोंका पालन करना चाहिये। पर हमारे जैनीभाई पर्यषणके पूरे मासकी बात तो न्यारी है एक दिन भी झूठ बोलना, चोरी करना, मायाचारी करना क्रोध करना अभिमान करना, व्याभिचार करना आदि दुष्कृत्योंको नहीं छोडते, किन्तु जिनसे टकाधर्ममें बाधा उपस्थित न हो और धर्मात्मा बनही जावें उनको अवश्य छोड देते है / यद्यपि वर्तमानकी त्यागप्रवृत्ति बुरी नहीं है, पर केवल उससे पर्युषण पर्वका उद्देश सिद्ध नहीं होता / पर्युषण पर्वका उद्देश सिद्ध करनेके लिये हमारा कर्तव्य है कि ऊपर जिन भावनाओंका दिग्दर्शन किया गया है उन भावनाओंको भाकर अपनी आत्माका विकाश करे /
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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