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________________ (45) भाति है:-१क्षमा 2 मार्दव 3 आर्जव 4 शौच 5 सत्य ६संयम 7 तप 8 त्याग 9 आकिंचन्य 10 ब्रह्मचर्य इसमें पहिलेके चार अर्थात् क्षमा, मार्दव, आर्जव और शौच क्रोधादि चार कषा. योंके-क्रोध, मान, माया, लोभके प्रतिपक्षी है / क्षमाके व्रतसे आत्मा क्रोध करना छोडता है और अपनेको शातिके वातावरणमें रखनेका अभ्यास डालता है। मादेव व्रतसे आत्मा अपने स्वरूपको अपनी शक्तिको, अपनी ज्ञानादि संपत्तिको जानकर ससारकी विनाशीक-अस्थिर सपत्ति पर अभिमान करना छोड़ नम्र बनता है। आर्जव व्रतसे मन वचन, काय की वक्रता को हटाता है और सरल भावी बनता है, क्योंकि वक्रतामे सत्यज्ञान नहीं हो सकता। उसके लिये सरल हृदयकी आवश्यकता होती है। शौच व्रतसे आत्मा लोभकषाय की अशुचिताको हटा कर अपने परिणामोंको, अपने स्वभावको शुद्ध करता है / इस प्रकार दशलाक्षणिक व्रतमेंसे पहिलेके चारों व्रतोंसे क्रोधादिकषायोंका अभ्यास घटता और आत्म म्मरणका अभ्यास होता है / सत्य, त्याग और ब्रह्मचर्यका वर्णन ऊपर कर आये है। शेषके तप, संयम और आकिचनका स्वरूप इस माति है। तप-कर्मोंके क्षय करनेके लिये अनशन आदि करना तप कहलाता है / तप बारह प्रकारका है। छह प्रकारका बाह्य अर्थात् शारीरिक है और छह प्रकारका अन्तरंग अर्थात् आत्मिक है / अन्तरग तप सहित जो बाह्य का तप किया जाता है वही तप फलदायी और तप कहलाने योग्य है / शेष तो लघन है। बाह्य तप शरीरको निरोगी और स्वस्थ बनाते है / उसमें
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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