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________________ (44) (15) प्रभावना और ( 16 ) वात्सल्य-इन दोके संबधमें दर्शनविशुद्धिके वर्णनमें हम कह चुके हैं। इस प्रकार ये सोलह मावनाये है जो आत्माका एक दिन ऐसा विकाश करती है कि वह आत्मा जगतका उद्धारक महा प्रभु होता है। और इसी लिये ऐसी आत्माओंका पद तीर्थकर-धर्मका प्रचारक इस महापदके नामसे उल्लिखित किया गया है। इन सोलहों कारणोंकी विशालता और व्यापकता हमारे पाठकोने समझी होगी। यदि पाठकोंने आन्तरिक दृष्टि से देखा तो इसमें कोई सन्देह नहीं है कि उनकी आत्मामें स्वयं इसका विश्वास उत्पन्न हो जायगा कि सोलहो कारण आत्माको विशाल बना सकते है। और ये सोलहों ही कारण ऐसे है जिनसे आत्माका बड़ा भारी विकाश होता है। पर्युषण पर्वमें जो महान् व्रत किये जाते है उनमें षोडशकारण व्रतका वर्णन हो चुका / अब दशलाक्षणिक और रत्नत्रय व्रत और है / ये तीनों व्रतमहात्रत कहे जाते है। शेष छोटे मोटे व्रत तो बहुतसे है। उन सबका भावपूर्वक वर्णन यहॉपर विस्तारभयसे हम नहीं कर सकते / फिर किसी समयपर देखा जायगा / दशलाक्षणिक व्रत उसे कहते है जिसमे आत्माके दश लक्षणोका यश प्रकारके स्वभावोंका मनन, अध्ययन एवं अभ्यास किया जाय / आत्मा अनादिकालसे विभावोंमें रजित हो रहा है और विभावोंको ही स्वभाव समझता है विभाव करना उसने अपना स्वभाव समझ रखा है इसी लिये वह रात्रिदिन क्रोधादि कषायोंको करता रहता है / दशलाक्षणिक व्रत इन कषायरूप विमावोंसे आत्माको बचा उसके स्वभावमे उसे स्थिर करता है / दशलाक्षणिक व्रत इस
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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