________________ (42) और महात्माओंकी भक्ति करना अपने आपको महात्मा बनाना है। क्योंकि मक्ति उसकी की जाती है जो आदर्श होता है और आदर्श की भक्ति करनेसे आत्मा स्वय आदर्श बननेकी महत्त्वाकाक्षा करता है। साथमें आदर्शका अनुयायि होता है और अंतमें जाकर स्वयं महात्मा--आदर्श बन जाता है। उपर जिन चार भक्तियोंका वर्णन किया गया है उनके पात्र स्वय आदर्श हैं / कोका नाश करनेवाले ज्ञान-दर्शन आदिका आचर्ण करनेवाले, पठन पाठन करनेवाले और स्वयं ज्ञान देवताके समान क्या और कोई आदर्श अथवा महात्मा हो सकता है ? अतएव इनकी भक्ति करनेका अभ्यास डालना जिससे कि आत्मा स्वयं सर्वज्ञ वीतराग आदि बने और एक दिन अन्य संसारियोंकी भक्तिका पात्र हो / (14) छह आवश्यकोंका करना-आवश्यक अर्थात् जरूरी दूसरे शब्दोंमें कर्तव्य कह सकते हैं अर्थात् निम्न लखित छह बातें करने योग्य है-अवश्य करने योग्य है-- (1) सामायिक अर्थात् किसी मत्रकी जाप्य देना / प्रायः नमस्कार मंत्रकी जाप्य देना चाहिए, क्योंकि इसमें कोका नाश करनेवाले सिद्ध, धातिया कौके नाशके अहेत, कोंके क्षय करनेके मार्गमें जानेवाले आचार्य, उपाध्याय साधुका स्मरण किया गया है। इन महात्माओंके स्मरणसे सिद्ध और अरहत बननेकी महत्त्वाकाक्षा उत्पन्न होती है और आत्मा समझने लगती है कि जिनका मै स्मर्ण करती हूँ उनके गुण सब मुझमें है और मै भी एक दिन अर्हत और सिद्ध हो सकता हूँ। तथा इनके स्मरणसे बडी मारी शाति प्राप्त होती है / आत्मविश्वास उत्पन्न होता है /