________________ (41) किंतु उचित है / इससे शरीरका स्वास्थ्य ठीक होनेके साथ ज्ञानकी वृद्धि होती है। इन्द्रियोके वश करनेका अभ्यास बढ़ता है। मन वश होता है। अतएव इस प्रकारके कायक्लेशका वर्तमानमें / प्रचार करना चाहिये। 8 साधुसमाधि-ज्ञान, शील, व्रत आदिके धारक साधुओंके तपमें कोई विघ्न आनेपर उसे दूर करना साधुसमाधि कहलाता है। इस गुणसे सत्यज्ञान, और शुद्धचारित्रकी रक्षा और वृद्धि होती है व परोपकारताके गुणका विकाश होता है। __ 9 वैयाऋत्य--गुणवानोके दुःख दूर करना गुणवानोंकी सेवा करना वैयावृत्य कहलाता है / इसके करनेसे ससारमे ज्ञानका विकाशक्रम जारी रहता है और आत्मामें ज्ञानकी मक्ति बढ़नेसे ज्ञानका भी विकाश होता है / क्योंकि किसी गुणका विकाश जभी होता है जब कि उसकी चारोंओरसे विश्वास हो / (10) अहद्भक्ति-कर्मोंके नाश करनेवाली, सर्वज्ञ वतिराग और सत्यज्ञानकी प्रकाशक आत्माओंकी भक्ति करना। (11) आचार्यभाक्ति-साधुओंपर शासन करनेवाले, दर्शन, ज्ञान, चरित्र, तप, वीर्य इन पाच प्रकारके आचरणोंको करनेवाले आचार्योंकी भक्ति करना / ' (12) उपाध्यायभक्ति-साधु होकर निरतर पठनपाठन करनेवाले उपाध्यायोंकी मक्ति करना / / (13) श्रुतभक्ति-सर्वज्ञद्वारा कहे हुए ज्ञानकी भक्ति करना। इन चारों प्रकारकी भक्तिसे भी ज्ञानका विकाश होता है, क्योंकि जिनकी भक्ति कही गई है वे स्वय ज्ञानवान् और महात्मा होते हैं।