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________________ (40) (7) कायक्लेशतप-इस व्रतका लक्षण इस प्रकार किया गया है कि " अनिगृहितवीर्यस्य मार्गाविरोधिकायक्लेशतपः" अर्थात् शरीरकी शक्तिको न छिपाकर सत्य मार्गमे विरोध न डालने वाला काय क्लेश तप कहलाता है। उपवास, एकाशन, रस त्याग आदि काय क्लेश तप है / आज कलके विलाम प्रिय समयमें इन कार्योंकी प्रायः यह कह कर हसी उड़ाई जाती है कि इनसे कुछ भी लाभ नहीं है किंतु शरीरको कष्ट होता है / ऐसा कहना एक अपेक्षासे ठीक है और दूसरी अपेक्षासे अयोग्य भी है। ठीक ते यों है कि आजकलकी काय क्लेश तप करनेकी जो पद्धति है वह पद्धति उपयोगी नहीं है, क्योंकि उसमें जिस लिये उपवासादि किये जाते है उसपर कुछ ध्यान न देकर केवल लघन को ही कल्याणका कारण समझा जाता है / ताश खेलना, चोपड़ खेलना, गप्पें मारना वर्तमानमे उपवासादिमें मुख्य कार्य है / छह छह वर्षों के लड़कोंसे उपवास कराया जाता है / गर्भवती स्त्रियाँ ( शास्त्रोंमें आज्ञा न होने पर भी ) पुण्यकी महत्वाकाक्षासे उपवास करती है और यहाँ तक देखा गया है कि ऐसी अवस्थामें उपवास करनेसे गर्भपात हो जाता है अथवा गर्मिणीकी मृत्यु भी कभी कमी हो जाती है / शक्ति न होते हुए भी तीन तीन चार चार दिनों तक उपवास किया जाता है और फिर उपवासके दिन हाय हाय करते व्यतीत होते है / इस तरह देखा जाय तो उपवास करना बेशक हानिकर है / परतु कायक्लेशका जो ऊपर लक्षण बाधा गया है कि शक्तिको न छुपाकर सत्यमार्गसे विरोधरहित अर्थात नत्त्व चितवन, आत्म ध्यान, शुमभावोंसे कायक्लेश करना अयोग्य नहीं
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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