________________ (9) सामायिक-मन वचन काय पूर्वक कुछ समय तक प्रतिदिन एक, दो या तीन वार हिंसा झूठ, चोरी, कुशील, अपरिग्रह इन पाच पापोंको त्यागकर सब जीवोंसे समताभाव धारण करना सामायिक है / इस व्रतसे आत्मामें शुम ध्यान करनेका अभ्यास बढ़ता है और दुर्ध्यानको वह छोडता जाता है तथा विश्वव्यापी प्रेमका विकाश होना प्रारभ होता है। (10) प्रोषधोपवासः---महिनेमे चार वार सोलह प्रहरका उपवास करना और उम उपवासमे आत्मध्यान, स्वाध्याय, तत्त्व चर्चा समभाव करना प्रोषधोपवास है / ध्यान रहे कि विना आत्मध्यान, तत्त्व चर्चा, स्वाध्याय आदिके किया हुआ प्रोषध उपवास निरर्थक है वह केवल लघन है / उपवासकी सार्थकता तभी है जब उसमें उक्त कार्य किये जॉय / इन बातोंसे स्वास्थ्य ठीक होनेके साथ साथ आत्माके ज्ञानका विकाश और समता भाव-मैत्री भावकी वृद्धि होती है। (11) भोगोपभोग परिणाम-भोगोपभोगकी सामिग्रीका परिमाण करना / यह ब्रत बिलासी-शोकीन, उड़ाऊ बनने से बचाता है। इस व्रतसे मनकी और इन्द्रियोंकी इच्छायें रुकती है और उनके रुकनेसे आत्मा भोगविलासादि से वचकर व्यवहारमें अपनी धन, शरीर आदि सपत्तिको भी वचा लेता है और परमार्थमें वह अपनी शुद्धताका विकाश करता है-निर्वलता हटाता है / क्योंकि भोगोपभोग की सामिग्री ही आत्माको निर्बल बनाती है और कमोंके बंधका क्रम जारी रखती है। इस व्रतसे उस सामिग्रीकी सीमा बंध जाती है जिससे कि आत्मा फिर अन्यान्य भोगविलासों में नहीं जाने पाता।