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________________ (36) इच्छायें कम होती है क्योंकि सीमाके बाहिर वे अपनी इच्छाओंको नहीं दोडा सकता / इस लिये यह दिग्बत मन तथा इन्द्रियोंको वश करनेमें सहायता देता है। (7) देशवत-दिनतसे आगे चलकर उसमें भी अपनी इच्छाओंको और भी कमती कर नियत समय तकके लिये चारों दिशाओंमें भ्रमण करनेकी प्रतिज्ञा करना देशव्रत है / अर्थात् दिव्रतमें जो सीमा आजन्म तक की बाधी थी उस सीमामें अब प्रतिदिन कम करना कि आज हम अमुक ग्राम तक जावेंगे / अमुक गली, मोहल्ला अथवा मकान तक जावेगे इस प्रकार प्रतिज्ञा करना देशत्रत है / यह व्रत दिखतसे एक श्रेणी ऊपर है और इसके द्वारा दिब्रतसे अधिक मन व इन्द्रियोकी इच्छाओंका निरोध होता है और वे वश होती जाती है। (8) अनर्थ दडव्रत-~-जिन कामोंसे कुछ प्रयोजन नहीं ऐसे निरर्थक कार्योंमे प्रायः मनुष्य अपनी शक्तियोंका हास करते है। निदा, प्रशसा दुर्ध्यान, चिता, हिंसा करनेके साधन अस्त्र शास्त्रादिक दूसरोंको देना खोटी कथाओंका करना यह सब अप्रयोजनीय है। अतएव इनको न करना अनर्थ दडव्रत कहलाता है / इस व्रतमे दो बाते है / एक तो यह कि समय इतना उपयोगी और मूल्यवान है कि उसे विना प्रयोजनके कार्यो व्यय नहीं करना चाहिये। दूसरे इस व्रतसे मन, बचन काय वश मे होते है / वे खोटे-अप्रयोजनीय कार्योंमें नहीं जाने पाते-विभावों में आत्मा रमित नहीं होने पाती और उससे कर्मवेध भी प्रायः कम होता है अथवा होता भी नहीं है।
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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