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________________ (33) की जहाँ तहाँ निंदा करता दिखाई देता है वह बताता तो अपने आपको वीतरागी है पर है वह महा निंदक / पर विचारशील पाठक देख सकेंगे कि उसका ऐसा करना किसी व्यक्तिगत द्वेषसे नहीं है किंतु ससारमें सत्यके प्रकाशको फैलानेकी सुबुद्धिसे है / और जैसा कि हमने उपर बताया उसपरसे पाठक जान सकेंगे कि जैनधर्म सत्यका कितना भारी पोषक, कितना बडा मक्त और कितना उसका अनुयायि है / वह मिथ्या प्रचारके छोटेसे भी छोटे कारणकी संगति होने देना आत्माके लिये दुखदायी समझता है और इसी लिये उसने आत्माको ऊपर कही हुई पच्चीस बातोमे वचकर सत्यदर्शन-ज्ञान मय बननेका आदेश दिया है। क्योंकि ज्ञानदर्शन ही सुख है यही आत्माका असली स्वरूप है और असली स्वरूपको-स्वभावमयताको प्राप्त होनाही सुख है। स्वभावसे विरुद्ध विमावोंमें जाना दुःख है। आत्माको विभावोंसे बचा स्वभावमें रमण होनेके अभ्यासके लिये पर्युषण पर्व प्रचलित किया गया है उसमें जो षोडशकारण व्रत किया जाता है उस व्रतमें से पहिला कारण दर्शन विशुद्धि है जिसका कि संक्षेप स्वरूप हम बता चुके है उस परसे पाठक जान सकेंगे कि दर्शन विशुद्धिकी भावना किस प्रकार आत्मस्वभावमें रमण होनेका ज्ञानदर्शनमें लीन होनेका कारण है / और इसी लिये इसकी भावना करने-अभ्यास करनेके लिये पर्युषणके दिनोंमें इसका व्रत किया जाता है अब शेषके पंदरह कारणोंपर विचार करते है। (2) विनयसंपन्नता-अर्थात् विनय युक्त होना / साधारणतया विनयी रहना तो मनुष्य मात्रका कर्तव्य है। पर यहाँ पर
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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