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________________ (32) सत्यके समीप नहीं पहुंचने देती। स्वामी रामतीर्थजीने एक स्थानपर कहा है कि किसी धर्मको इसलिये मत मानो कि उसके माननेवाले आधिक जनसाधारण है, क्योंकि अधिकांश लोग मिथ्या विचारोंपर विश्वास रखनेवाले होते है / गमतीर्थजीके इस भावको ही हम मक्षेप में लोकमूढता कहते है / और जहाँ मिथ्याका विश्वास होता है बताईये वहाँ सत्य ज्ञान-दर्शनका प्रकाश कैसे पहुँच सकेगा जब तक कि वे मिथ्या विश्वासको न हटावें। ___ इस प्रकार पच्चीप्त दोष है जो सत्यका प्रकाश, सत्य ज्ञानी, सत्य विश्वासी नहीं होने देते / प्रत्येक कुछ न कुछ मत्यसे दूर रहते है और इनका सत्यसे दूर रहना ही बतलाता है कि ये मत्यके कारण नहीं किंतु विघातक है। इनीसे इनसे पृथक् रहकर मत्य दर्शन-ज्ञान-सम्यदर्शन ज्ञानकी विशुद्धि करना मत्यके विश्वाम और ज्ञानमेंसे मैलको निकाल देना अपने ज्ञान-दर्शनको निर्धान्त बनानाही दर्शन विशुद्धि है। जोकि भविष्यमें सर्वज्ञ बनाती है। अथवा दर्शन विशुद्धिही सर्वज्ञतत्त्वका सूक्ष्म रूप है। सर्वज्ञ होने वाली आत्माओंको पहिले हीमे-कई भव पूर्वसे मूक्ष्म रूपमें सर्वज्ञ होना पड़ता है तब कहीं आगे जाकर सर्वज्ञ पदकी प्राप्ति होती है और वह सूक्ष्म रूप दर्शनविशुद्धि है। पचीस दोषोंके ऊपर कहे वर्णनसे हमारे पाठक देख सकेंगे कि हमारे तत्त्ववेत्ताओंने सत्य से हटानेवाले कारणोंको किस तरह ढूढ निकाला है कि उनके आश्चर्यजनक वर्णनसे पता लगता है कि निःशंक ये पच्चीसों कारण सत्यके विश्वास और ज्ञानमे बाधा उपस्थित करनेवाले है / जैनधर्म पर प्राय. दोष लगाया जाता है कि वह कुगुरु, कुदेव, कुधर्म,
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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