________________ (30) हों, सत्य ज्ञानसे सत्य दर्शनसे रहित हों-यह भी दोष है जो हममें सत्यका प्रकाश नहीं होने देता / क्योंकि जिन्हें गुरु समझा जाता हो वह गुरु ही जब सत्यसे दूर है तो उसके शिष्योंमें सत्यका प्रकाश कैसे हो सकता है ? कुदेवोंके मानने वालोंकी प्रशंसा करना कुधर्म मानने वालोंकी प्रशंसा करना, कुगुरु मानने वालोंकी प्रशसा करना ये तीनों भी दोष है, जोकि आत्माको सत्यके प्रकाशसे-सम्यगदर्शन सम्यग-ज्ञानसे दूर करते है / क्योकि जो आत्मा सत्यकी इच्छुक है-सत्यकी जिज्ञासु है वह जब तक मिथ्यादर्शनज्ञानके प्रचारकोंसे ऐसे विचारोंके फेलानेवालोंसे उपासकोसेमिथ्यादर्शन-ज्ञानके भक्तोसे दूर न रहेगी तब तक वह सत्यमार्ग नहीं पा सकती / अतएव सत्यज्ञान और सत्य दर्शनके लिये हमें ये तीनों भी दोष मानना पड़ेंगे / ऊपर बताये हुए छहों दोष अर्थात् कुदेव, कुगुरु, कुधर्म और इन तीनों के माननेवाले सत्यज्ञान दर्शनके स्थान न होनेसे इनके पास सत्यका प्रकाश न मिलने से, सत्यमार्ग न मिलनेमे इन्हे अनायतन अर्थात् इन्हें सत्यके किसी भयसे, किसी आशासे, किसी लोभसे मिथ्यादर्शन ज्ञान-झूठे विश्वास और ज्ञान बालोंका आदर सत्कार देव-मूढ़ता करना सत्यज्ञान दर्शनके उत्पन्न होनेमें बाधा देता है / क्योंकि मिथ्यादर्शन ज्ञानवालोंका सत्कार करना एक तरहसे उनके समीपी होना है / और ज्यों ज्यों हम उनके समीपी होते जावेंगे त्यों त्यों सत्यसे हटते जावेंगे दूसरे सत्यके जिज्ञासुओं, सत्यके प्रचारकों, सत्य सिद्धान्तके बतानेवाले