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________________ (29) अधिकारोंपर वह मद करने लगा है तो ऐसा महान् अधिकार पाकर वह आत्मा कैसे अपने आपको सम्हाल सकता है ! जिस प्रकार छोटेसे पात्रों अथवा घडेमें एक बडे वर्तनका जल नहीं समा सकता, और यदि उसमें भरनेका प्रयत्न किया जाय तो वह बाहिर निकलने लगता है / इसी मानि जो आत्मा अधिकारोंपर मद करता है समझना चाहिए कि वह छोटा पात्र है उसमें जबकि छोटे छोटे अधिकारोंके समाने ही की जगह नहीं है तो जगत्पूज्यतासा अधिकार उममें कैमे समा सकेगा / अतएव प्रभुतामद एक दोष है जो आत्माके विकाशमें उसकी अनत शक्तित्त्वमें बाधा उत्पन्न करता है और बताता है कि ऐसी आत्मा पदार्थोंके सत्य ज्ञानसे-अनुभवात्मक ज्ञानसे बहुत दूर है। उसने अभीतक नहीं जाना है कि आत्माका, कर्मोंका, संमारका, कर्मोंके फलका क्या मर्म है। और इसी ज्ञान दर्शनके अभावसे वह तुच्छ तुच्छ बातोपर मद करता है। ऐसी आत्माको परमात्मा मानकर सेवा करना जो झूठका उपदे शक हो, मिथ्या ज्ञान और मिथ्या विश्वास कुदेव-सेवा अथवा मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञानका प्रचा रक हो ऐसोंकी सेवा सत्य ज्ञान-दर्शन नहीं होने देता। - मिथ्या विचारोंका समुदाय अथवा वस्तुस्वरूपको यथार्थ न बत लानेवाले धर्मको मानना / ऐसे विचारोंके वातावरणमें रहनेसे-ऐसे धर्मके माननेसे सत्य दर्शन और सत्यज्ञान नहीं होने पाता। कुगुरु ऐसे मनुष्योंको अपने गुरू मानना जो पाखंडी हों, लोभी हो, द्वेषी रकही मिथ्यादर्शन, और मिथ्या विवाद कुधर्म
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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