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________________ (28) कोई भी प्रकाश नहीं ठहर सकता / ऐसे रूपका अभिमान न कर जो शरीरादिका अभिमान करते है वे आत्मस्वरूपसे च्युत है और उनका सत्यज्ञान-सत्यविश्वास शुद्ध नहीं है। ज्ञानका अभिमान करना / बिना सर्वज्ञके सबका झान अधूरा है। उस अधूरे ही ज्ञान पर जो अभिमान ज्ञान-मद करता है। समझना चाहिये कि उसका वह अधूरा ज्ञान भी निर्दोष नहीं है / क्योंकि उसने अपने ही ज्ञानको सब कुछ और निर्दोष समझ रखा है जब कि उसप्ते कई दर्ने आगे जाकर ज्ञानकी सम्पूर्णता होती है / उसकी यह भ्रान्ति है जो बतलाती है कि इस आत्माका ज्ञान निर्दोष नहीं है / अतएव ज्ञानका अभिमान एक दोष है जो सत्य ज्ञान-दर्शनसे नीचे गिराता है। अधिकारोंका मद करना / जो मनुष्य जो आत्मा अधिकारीको पाकर मद करती है वह अपने आपको प्रभुता मद गिरानेका प्रयत्न करती है, क्योंकि अधि कारादिकी प्राप्ति कर्मजनित है, क्षणिक है। क्षणिक अधिकारोंको पाकर जो मद करते है वे आत्माके सत्यस्वरूपसे पराड्मुख होते है और न वे अपने स्वरूपको प्राप्त कर ही सकते है, क्योंकि उनकी आत्मामें वह गभीरता पैदा नहीं होने पाती जो उस अवस्थाका सूक्ष्म स्वरूप है, जिसमें आत्मा जगत्का स्वामी बननेवाला है / जिसे तनिक अधिकारोंपर मद हो जाता है क्या वह आत्मा उस अधिकारको पासकता है जिसके कि आगे देव, इन्द्र, चक्रवर्ती आदि नमन करते है, क्योंकि जब थोड़े ही
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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