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________________ (27) एक बार एक सुंदर स्त्रीपर कोई साधु मोहित होगया और उसने उस स्त्रीसे प्रणयकी याचना की। पतिव्रता स्त्रीने साधुसे अपना पल्ला छुडानेके लिये कहा कि महाराज आप अमुक दिन पधारें तबर्मे आपको निश्चित् उत्तर दूंगी / रूपांध साधु चला गया। इधर स्त्रीने अपने कानके पासकी फस्त खुलवा कर उसमेंसे रक्त निकलवा लिया। और उस खूनको एक पात्रमें रख छोड़ा / खून निकल जानेसे स्त्री अशक्त हो गई रूप कुरूप होगया / सुंदर आँखे बैठ गई / निश्चित समय पर कामी साधु आया / स्त्रीने उसकी अभ्यर्थना की / साधु वार वार उस स्त्रीके मुँहकी ओर देवकर यह विचार करता था कि वह सुंदर स्त्री आज क्यों नहीं दिखाई देती जिसने कि मुझे बुलाया था / आखिर उसने पूछा कि माता निस स्त्रीने हमारी पहिले अभ्यर्थना की थी वह कहाँ है ? उसने कहा कि महाराज मै ही हूँ। साधुने कहा कि नहीं वह तो परमा सुंदरी थी, तुम तो सुदरी नहीं हो। वह रूपवान् स्त्री तुम नहीं हो सकतीं / स्त्रीने कहा कि नहीं महाराज वह मै ही हूँ और यह कह कर उस खनके पात्रको लाकर आगे रख दिया और कहा कि यह लीनिये मेरा रूप / जिस रूप पर आप आशक्त थे वह रूप यह रखा है आप लेनाइये / साधुनी छिः छिः थुः थु करने लगे और मनमें विचारा कि हाय जिस रूप पर मै मरता था वह और कुछ नहीं घृणित पदार्थोंके ऊपरका एक आच्छादन है। सार यह है कि शारीरिक रूप रूप नहीं, किंतु घृणित पदार्थोंका समुदाय है, और आत्माका रूप शुद्ध रूप है जिस में जगत्के सम्पूर्ण पदार्थ प्रतिभासित होते है और जिसकी ज्योतिके आगे
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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