________________ (26) सकता है जो उनपर अभिमान करे / अपनी ऋद्धियोंको पूरी पाकर भी जो आत्मायें अभिमान करती हैं वे अपने विकाशके मार्गको बंद करती है, क्योंकि उन्हें वे किंचित् मात्र ऋद्धियाँ ही संतोषप्रद प्रतिभाषित होती हैं और उन पर वे अभिमान करने लगती हैं / ऐसी आत्माओंके सबंध सिवाय इसके क्या कहा जा सकता है कि उन्होने अपने भडारको अभी देखा तक नहीं है और इसीसे उनका ज्ञान-दर्शन अपूर्ण है। तप किया जाता है आत्माके गुणोंका विकाश करनेके लिये अथवा कर्मोंके नाशके लिये / यदि उसी तप-मद तपका मद किया जाय-अभिमान किया जाय तो वही तप ताप हो जाता है अर्थात उससे कोका बध होता है। और जो तपविकाशके लिये किया गया था वही अभिमान करनेसे नीचे गिराने लगता है। छल, कपट, माया आदि पाशविक गुण तप मदसे आ दवाते है जिनसे आत्मा नीचे ही नीचे गिरती जाती है / अतएव तप मद एक दोष है जो आत्माके दर्शन गुणमें विशुद्धता नहीं होने देता / तप मद होनेसे आत्माको सत्य स्वरूप का भान नहीं होता, और इसीलिये वह थोडेही तपसे अपने आपको महात्मा गिनानेका प्रयत्न करने लगता है। ये प्रयत्न ही बतलाते है कि वह (आत्मा) सत्यस्वरूपसे बंचित है / जिस आत्माका रूप निर्मल है ज्योतिर्मय है, स्फटिकके समान शुद्ध है क्या वह शरीरके घृणित, असुशरीर-मद हावने, चर्म मास त्वचादि युक्तरूप पर मद कर सकता है ? कहा जाता है कि