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________________ (23) भी वह आगे नहीं बढ़ता और उस अंधकारको दूर नहीं करता। ऐसी आत्मायें भविष्य में विकसित नहीं होती। इस प्रकार ये आठ गुण हैं जिन्हें सत्य ज्ञान और सत्य दर्शन रूप सम्यक्त्वके अंग माने गये है। अर्थात् मनुष्य शरीरके जिस प्रकार हाथ पाँव, कान नाक आदि आगोपाग होते हैं और शरीरको गमनागमनादि क्रियाओंमें सहायता देते हैं उसी प्रकार सत्यज्ञान और सत्यविश्वास के ये आठ अंग हैं जो उसके विकाशमें सहायक है। ये किस तरहसे सहायक है और इनकी सहायतासे किस प्रकार आत्माके सत्य ज्ञान-दर्शनका विकाश होता है यह हम इनके पृथक् पृथकू संक्षेप वर्णन में दिखला चुके हैं / इनके विरुद्ध वे आठ दोष हैं जिनका वर्णन हम इनसे पूर्व कर चुके है उनसे हमारी आत्माका विकाश किस प्रकार रुकता है इसे भी हम दिखला चुके है। ऊपर कह आये है कि सत्य ज्ञान दर्शनमें दोष उत्पन्न करने वाली पच्चीस बातें है उनमें से आठ दोष ऊपर कह चुके है शेष सत्रह इस भाति है:आत्मा का कुल कोई है ही नहीं वह अनादि अनंत है। कर्मोंके कारण जो वह संसारमें जन्म मरण कुल-मद कर रहा है उसकी अपेक्षा उसके माता पिता माई बंधु होते है / पर असलमे उसका उत्पादक और विनाशक कोई नहीं है / ऐसा सत्यज्ञान-दर्शनवाला आत्मा कभी कुलका मद नहीं कर सकता / क्योंकि वह जानता है कि मै अमर्यादित शक्ति वाला हू / मेरा स्वरूप अजर, अमर, नित्य मा२
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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