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________________ (21) इस गुणसे युक्त आत्मा मूर्ख द्वारा की हुई सत्यमार्ग की निंदा तक नहीं सुन सकता / वह उस निंदाको उपगृहन अपने सत्यज्ञान-दर्शनके प्रभावसे दूर करता है। सत्यमार्गकी-सत्यज्ञानकी निंदा मुनना उसकी दृष्टिमें आत्म-अपमान है-आत्माका लाइविल है। इस गुणसे आत्मामें सत्यका दृढ़-अखंड प्रेम उत्पन्न होता है। जो उसे भविष्यमें दृढ़ निश्चयी, सत्यज्ञानवाला, निर्मय और जगत्पूज्य बनाता है। वात्सल्य सहधर्मियों, सत्य ज्ञानियों, सत्यविश्वासवालोंका आदर सत्कार करना उनसे प्रेम करना यह गुण आत्मामें विश्वबंधुत्वका उदारभाव उत्पन्न करता है। विश्वप्रेमका यह मंक्षेप रूप है, गुण ग्राहकताका पाठ है, गुणकी जिज्ञासा उत्पन्न करनेका मार्ग है / इस गुणसे आत्माकी विशालता और गुण ग्राहकता प्रगट होती है जिनसे कि वह स्वय एक दिन गुणोंका समूह वन जाता है। नीतिकारका यह कथन कि यदि तुम किसीसे अपना सन्मान कराना चाहते हो तो तुम्हारा कर्तव्य है कि तुम उसका सन्मान करो। इसी प्रकार यदि कोई 'आत्मा चाहती है कि वह सम्पूर्ण गुणों का स्वामी हो और सम्पूर्ण गुण वाले उसे अपना आदर्श मानें तो उसका सबसे पहिला कर्तव्य है कि वह उन गुणवालोंही में-सत्यगुणके जिज्ञासुओंमें, सत्यमार्ग पथिकोंमें, सत्यज्ञानके मार्ग पर विश्वास करनेवालोंमें आदर और प्रेम भाव रखे।
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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