________________ (20) समझ लो वह आत्मा सत्यका जिज्ञासु, सत्यका विश्वासी, सत्यकी सगतिवाला और सत्यका ही पक्षपाती है / उसका ज्ञान भी सत्य है। विश्वास भी सत्य है / उसे सम्यग्दर्शन--ज्ञान होगया है। ऐसी आत्मा कभी मूढ़ भावोंमें अनुरजित नहीं होता न कभी मूढ भावोंकी प्रशंसा करता और न उनमें अपनी सम्मति ही प्रकाश करता है, वह सत्यका जिज्ञासु, सत्यका प्रकाशक, सत्यकी मूर्ति, और सत्यका उपासक रहता है / वह कभी भी, कैसे भी सकटोंके उपस्थित होनेपर भी कैसी ही भयकर स्थितिमें रहनेपर भी सत्यसेमत्यमार्गसे नहीं हटता / वह कभी मूढतामें अपनी किंचित्मात्र भी सम्मति प्रकाशित नहीं करता / इस गुणसे आत्माको सत्याभिरुचि, सत् ज्ञान और सत् विश्वास प्रगट होते है जो उस महास्थितिके लक्ष्य रूप है जिसमे आत्मा सत्यमय हो जानेवाला है। ५स्थितिकरण-सत्यज्ञानसे, सत्य दर्शनसे, सत्यचारित्रसे च्युत होनेवाले प्रागियोंको सत्यमार्गमे स्थित करना है-वह स्थितिकरण गुण है / यह आत्माके उम हितोपदेशी गुणका एक सूक्ष्म रूप है जिसके कि द्वारा वह प्राणी मात्रको सच्चा ज्ञान, सच्चा विश्वास और सच्चे चारित्रमे एक दिन लीन करेगा / इस महागुणका प्रारभ स्थितिकरण गुणसे वह करता है और एक दिन हितोपदेशी अवस्थाको जो कि ईश्वरत्वका एक गुण है प्राप्त करता है / दूसरे यह गुण यह भी बतलाता है कि इस गुणसे युक्त आत्माको मत्यमार्गका विश्वास हो गया है-दर्शनज्ञान हो गया है, जिस परसे कि वह सत्यमार्ग और असत्यमार्गका निश्चय करता है, और उस सत्यमार्गसे स्खलित होनेवाली आत्माओंको बचाता है।