________________ (18) प्रकाशनमें सत्य मार्गका प्रचार करनेमें नहीं रुकता / वह विध्रोंके लिये नहीं ठहरता, किंतु सत्यमार्गको निष्कटक बनाता हुआ अगाडी बढ़ता जाता है और अज्ञानको दूर करता जाता है। क्योंकि जिस आत्माको एक दिन उस दर्नेका महात्मा होना है जिसके कि आगे कोई भी छद्मस्थ नहीं ठहर सकेगा, जिसके कि मानस्तंभको देखते ही ज्ञान मद-धारियोंका मद खर्व होजाता है। जिसका ज्ञान-सत्य ज्ञान, शुद्धज्ञान, अखड एव निर्मल ज्ञान होनेवाला है वह विकाशके आरम में सत्य ज्ञानके विरुद्ध अज्ञानका प्रचार कैसे देख सकता है, और जो देख सकता है तो समझना चाहिये कि उसकी आत्मा उस महालक्ष्यके-तीर्थकरत्वके सन्मुख नहीं है और उसके सत्य ज्ञान-दर्शन में कुछ न्यूनता है। ऊपर जिन आठोंका वर्णन किया गया है वे आठ दोष है। इन दोषोंके होनेसे आत्माके ज्ञान-दर्शन में क्या खामी होती है, क्या अपूर्णता रहती है यह ऊपर संक्षेपसे बता आये है / यहॉपर इन आठोके विरुद्ध जो आठ गुण है उनसे ज्ञान-दर्शनकी विशुद्धतामें क्या सहायता मिलती है और उनसे आत्माके उच्च गुण कैसे विकसित हो जाते है यह दिखा देना उचित प्रतीत होता है 1 निःशांकित-इस गुणसे आत्माका ज्ञान निर्धान्त, शंका रहित और शुद्ध होता है तथा अपने शुद्ध ज्ञानपर अटल विश्वास होता है / और वह ज्ञान अनुभवात्मक ज्ञान होता है / सम्पूर्ण सत्यज्ञान-सर्वज्ञत्वके विकसित होनेकी पहिली सीढ़ी आत्माके प्राप्त सत्यज्ञानका शंकारहित निर्धान्त होना है।