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________________ (17) नहीं होता, वहाँ तो सहधर्मीभाव और उस भाव प्रति अखंड निर्मल प्रेम होता है / यही विश्वबंधुत्व--तीर्थकरत्वके एक गुणकी पहिली सीढी अथवा हितोपदेशी गुणका एक सूक्ष्मरूप है। यदि यह गुण न हो, अपने सहधर्मी-सहमावियों में आदर सत्कार और प्रेम न हो तो वह एक दोष हैं, जो दिखलाता है कि आत्माके ज्ञान दर्शनमें अभी खामी है, जोकि हममें उदार भाव, प्रेमभाव नहीं होने देती-एक साथ बैठनेवालों, एकही विचार के विचारकों, एकही धर्मके अनुयायियोंमें प्रेम बुद्धि उत्पन्न नहीं होने देती / यदि हमारा ज्ञान, दर्शन, सत्य ज्ञान और सत्य विश्वास निदोष है तो क्या कारण है कि हममें वह प्रमोद भावना, वह गुण प्रेम और सत्य प्रेम उत्पन्न नहीं होता जिसके कि द्वारा सत्य ज्ञान और सत्य विश्वास वालों अथवा इनके मार्ग पर चलने वालोंको अपनेही समान सत्य जिज्ञास समझ उनका आदर सत्कार कर सक्ते है। अतः यह दोष दिखाता है कि हमारे ज्ञानमें अभी कुछ कीट-मैल शेष है। अज्ञानाधको दूर करनेका प्रयत्न न करना / इसके विरुद्ध जो प्रभावना है उसका कार्य है कि अप्रभावना. अज्ञानको दूर कर सत्यज्ञानको-जिन शासनके महात्म्यको जैसे भी बने कितनेही विनोंके आपडने पर भी प्रकाशित करना प्रभावना गुण है। और अप्रभावना दोष है। प्रभावनाके न करनेसे ज्ञात होता है कि आत्माका ज्ञान अभी सत्यज्ञान और सत्य विश्वासके रूपमें परिवर्तित नहीं हुआ। क्योंकि सत्य प्रेमी, सत्य ज्ञानी विघ्नोंकी परवाह करके सत्यके
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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