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________________ अमी वह श्रद्धा नहीं है जिसके कि कारण हम दूसरेको अशुद्ध मार्गपर जाने से रोकें क्योंकि जबतक हमको श्रद्धा है कि लक्ष्य-वेध करनेका मार्ग अमुक है दूसरा नहीं तो हम फोरन अपनेको व अन्य जगत्वासियों को भी सम्हाल सकेंगे और उसी शुद्ध मार्ग पर लासकें गे। पर जब कि हमको यह श्रद्धा हो कि अमुक मार्ग है और शायद अमुक भी हो तब तक हम किसीको भी शुद्ध मार्गमें न तो लाही सकते और न उनकी उस मार्ग स्थिति ही कर सकते है। अतएव यह दोष दिखलाता है कि आत्मामें अभी सन्मार्गके जानने और उस पर विश्वास करनेकी बड़ी भारी कमी है। अपने समुदायमें, समाजमें, सह विचारियोंमें, अथवा सहधर्मियों में आदर सत्कार और प्रेम रूप भावका न अवात्सल्य होना। इस दोषका प्रतिपक्षी जो वात्सल्य गुण है वह विश्ववंधुत्वके उदार मावों युक्त आत्माको बनानेकी पहिली सीढ़ी है। मनुष्यका कर्तव्य है कि उदार बने और उस उदारताका कार्य वह अपने कुटुम्बपरसे प्रारभ करे / अर्थात् पहिले कुटुम्बको सुखी करनेकी और अपना ध्यान लगावे / उसके लिये अपने भोगोंका त्याग करे। उनके दुःखसे दुःखी और सुखसे सुखी बने / उसके बाद जातीय उदारता आगे बढ़े अर्थात् जिस जाति, जिस कुलमें जन्म लिया है उसके सुख दुःखकी परवाह करे। फिर आगे बढ़कर सहमियोंमें उदार भाव रखे / यहाँसे विश्व प्रेमका पाठ प्रारभ होता है / क्योंकि सहमियोंमें, सहविचारियों में, शुद्ध दर्शन-ज्ञानके धारियोंमें फिर जाति और कुलका भेद लिया है उसके सुखद बड़े अर्थात् जिस्म और आगे बढ़कर
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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