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________________ (15) जो मार्ग-जो विचार-जो धर्म स्वयं शुद्ध है, जिसकी शुद्धता स्वाभाविक प्राकृतिक है उस मार्गकी निंदा अनुपगृहन करना अथवा निंदा होती हुई देखते भी चुप रहना-यह दोष बतलाता है कि जो अत्मा इस प्रकार करती है वह शुद्ध मार्गसे-निष्कटक मार्गसे दूर है। उसमें अभी इतना बल-ज्ञानवल और आत्मवल प्रगट नहीं हुआ जो शुद्ध मार्गका माहात्म्य प्रगट कर सके अथवा उस सच्चे मार्गकी सच्चे विचारोंकी सच्चे धर्मकी निंदा होती हुई न सुन सके और अपने ज्ञानवलप्से उसे दूर कर सके / इस दोपसे दो बातें होती है / एक तो यह कि किसी मार्गकी बारबार निंदा सुननेमे उस मार्ग परसे धीरे धीरे विश्वास हटने लगता है चाहे वह कैसा ही शुद्ध मार्ग क्यों न हो / और ऐसा होनेसे-शुद्ध मार्गके ऊपरस विश्वास हट जानेसे आत्मा की ज्ञानदर्शन विशुद्धि अपूर्ण रह जाती है। और दूसरी यह कि हम सच्चे विचारोंको भी प्रगट करनेमें असमर्थ हो जाते है / इसीलिये सच्चे ज्ञान दर्शनके लिये अनुपगृहन एक दोष मानना पडता है। किसी मनुष्यको सच्चे मार्गसे, सच्चे विश्वाससे शुद्धशीलसे चारित्रसे च्युत होते देखते रहने पर भी अस्थितिकरण तटस्थ वृत्ति रखना अस्थितीकरण कहलाता है। इसके होनेसे जाना जाता है कि आत्मामें अभी वे उच्च और शुद्ध भाव नहीं हुए है जिन के कि द्वारा हम च्युत होते हुए को बचावें / अथवा हम में शुद्धमार्ग पर
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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