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________________ (13) पञ्चीस बातें ऐसी है जो दोष उत्पन्न करती हैं अर्थात् सञ्चा ज्ञान और सच्चा विश्वास नहीं होने देतीं, और यदि होता भी है तो जैसा चाहिये वैसा निर्धान्त नहीं होता / वे पञ्चीस बातें इस भाति है: शङ्का-पदार्थोके स्वरूपमें शंका ( शक) का रहना कि अमुक पदार्थका स्वरूप क्या है / जब तक यह शंका रहती है तब तक किसी भी विषयका अनुभवात्मक ज्ञान नहीं हो पाता / इसके रहनेसे ज्ञानकी स्थिति डवॉडोल रहती। __ अकाँक्षा-कर्माधीन, सान्त ( अन्तसहित-विनाशीक ) और जिनका परिपाक दुःखमय है ऐसे मासारिक सुखोंकी चाह करना / प्रत्यक्षमें जानते हुए भी कि सासारिक सुखोंका मूल्य कितना है उनकी आकाक्षा करना बतलाता है कि अभी तक आत्माका ज्ञान वह अनुभवात्मक ज्ञान-सच्चा ज्ञान नहीं हुआ जिसपर कि उसका अटल विश्वास हो / क्योंकि जिस आत्माको एक बार यह विश्वास और ज्ञान हो जाता है कि मास खाना बुरा और मानवीय गुणोंसे विरुद्ध है वह उसे छूती तक नहीं है / पर निसे यह ज्ञान तो हो कि मास खाना अनुचित है और इससे अमुक अमुक रोगों और दोषोंकी उत्पत्ति होती है, पर वह बराबर उससे अपना संबंध रखे तो समझना चाहिए कि उसका ज्ञान अभी उतना निर्धान्त नहीं है जितना की होने कि अवश्यकता है। और न उसे अपने आपके ज्ञानपर अटल विश्वास ही है / इसीसे कहते हैं कि सच्चा ज्ञान और विश्वास-जैनधर्मके शब्दोंमें कहें तो सम्यग्दर्शन और सम्यन्नान एक साथ ही उत्पन्न होते हैं।
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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