SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 206
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (12) है प्रकृतिके नियमानुसार उस लक्ष्य की ओर हमें धीरे धीरे गमन करना होगा उसके अनुरूप अपने आपको बनाते जाना होगा तब कहीं हम लक्ष्य-बेघ कर सकेंगे। इसी तरह जिस आत्मा को तीर्थकर की महान् आत्मा बनना है, जिसे सर्वज्ञत्व प्राप्त करना है, जिसे कर्म-मलको दूर करना है, जिसे जगत् को हित का मार्ग बताना है, ससार का तरणतारण बनना है उस आत्मा को धीरे धीरे प्रकृतिके नियमानुसार अपना विकाश करना होगा और उसके लिये धीरे धीरे अपनी आत्मामें अंशाशोंमें तीर्थकरत्व, सर्वज्ञत्व, हितकर्तृत्व गुण लाना होगा। ऐसी आत्माओंका लक्ष्य तीर्थकरत्व होता है / अतएव इस लक्ष्यका वेध करनेके लिये पूर्व भवोंमें-अशाशोंमें ( चाहे वह कितने ही छोटे रूपमें क्यों न हो) तीर्थकरत्त्व प्राप्त करना होगा। उसी तीर्थकरत्वका एक बहुत छोटे रूप पर मबसे पहिला अश दर्शनविशुद्धि है / जिस महान् आत्मा का ज्ञान एक दिन सम्पूर्ण चराचर पदार्थोंको देखनेवाला होगा, जिसमें किसी भी प्रकारका दोष और कोई भी भ्राति नहीं हो सकती उस आत्माको अपनी यह स्थिति प्राप्त करनेके लिये पहिले से ही अपने ज्ञान और श्रद्धानको सच्चे ज्ञान और उसपर अटल विश्वासको विशुद्ध बनाना होगा-निर्धान्त बनाना होगा तब कहीं आगे जाकर वह आत्मा सर्वज्ञ हो सकेगा / इसीलिये तीर्थकर-सर्वज्ञ होनेमें दर्शनविशुद्धि अपने सत्य ज्ञान और विश्वासकी निर्धान्तता पहिला कारण माना गया है / आत्माके सच्चे ज्ञान और सच्चे दर्शन अर्थात ज्ञानमें, अटल विश्वासमें
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy