________________ कारण-षोडशकारण कहते है / सोलह बातोंका चितवन, मनन, पालन एवं इन रूप होनेको षोड़शकारण व्रत कहते है / वे सोलह कारण-सोलह भावनायें इस भाति है,-१ दर्शनविशुद्धि, 2 विनयसपन्नता, 3 शीलवतोंका निरतिचार पालन, 4 अमीक्ष्णज्ञानोपयोग, 5 संवेग, 6 त्याग, 7 तप, 8 साधुसमाधि, 9 वैयावृत्य, 10 अर्हद्भक्ति, 11 आचार्यभक्ति 12 उपाध्यायभक्ति, 13 प्रवचनभक्ति, 14 आवश्यकोंका पालन, 15 मार्गप्रभावना, 16 वात्सल्य इन 16 बातोंका मन, बचन, कायकी एकाग्रतापूर्वक अर्थात् मन वचन कायको विभावोमें न जाने देकर शक्तिअनुसार काय क्लेशपूर्वक बार बार चिन्तवन करना षोडशकारण व्रत कहलाता है। यहॉपर इन सोलहों कारणों पर प्रथक् प्रथक् बिचार करके यह दिखलानेका प्रयत्न करते है कि इनसे किस प्रकार स्वभावकी ओर आत्माकी प्रवृत्ति होती है। पहिले कह आये है कि षोडश भावनाओंसे-उक्त सोलह बातों से तीर्थकर प्रकृतिका बध होता है-आत्मा दर्शन विशुद्धि. उस स्थितिको प्राप्त होता है जिसकी उच्चता सम्पूर्ण जगत्के प्राणियोंसे बढी चढ़ी है, जिसके द्वारा सम्पूर्ण जगत्का हित होता है, जिसके आगे राजा महाराजा देव इन्द्र आदि नतमस्तक होते है, जिसमें आत्माका पूर्ण विकाश होकर वह सर्वज्ञत्वको प्राप्त होता है। प्रकृतिका यह नियम है कि वह कोई कार्य तडाक फड़ाक नहीं करती उसके राज्यमें सब कार्य क्रमशः होते है-सिलसिलेसे होते है। हमें जिस लक्ष्यका वेध करना