________________ (10) विना माने न रहेगा कि इस पर्वमें हमारे यहा जो जो क्रियाएं प्रचलित है वे बड़ी ही उपयोगी और सार्थक है यदि उनका दुरुपयोग न किया जाय तो, इन दश दिनोंमें हमारे यहाँ कई प्रकारके व्रत पालन करने की प्रथाएं है / अर्थात् कोई पुष्पांजलि, कोई दशलक्षण, कोई रत्नत्रय, कोई अनंतचतुर्दशी और कोई षोडशकारण व्रतका पालन करता है / इन व्रतोंकी सार्थकता इनके नामोंसे ही प्रतीत होती है / अर्थात् अमुक दिनोंमें अमुक समय तक मन, वचन कायकी प्रवृत्तिको विभावोंसे रोकते हुए सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान सम्यग्चारित्रकी भावना करना-निरतर विचार करना, इनके समीपवर्ती होनेका प्रयत्न करना रत्नत्रय व्रत है। इसी प्रकार दश दिनो तक मन, बचन कायकी प्रवृत्तिको विभावोंमें जानेसे रोक क्रोध, मान, माया, लोभसे बचना, क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, आकिंचन, ब्रह्मचर्यरूप आत्माके स्वभावमें लीन रहना दशलाक्षणिक व्रत है / इसी प्रकार तीर्थकर प्रकृतिको कारणभूत सोलह भावनाओका विचार करना षोड़शकारण व्रत है / इन व्रतोंके लाभोंको स्पष्ट करनेकी तथा यह दिग्वला देनेकी कि इनके पालनसे हम कैसे आत्मस्मरण कर सकते है ? कैसे स्वभावमय हो सकते है ? अथवा कैसे अपना जीवन उच्च बना सकते है / इसको जाननेकी यहाँ विशेष जरूरत है, अतएव इनपर कुछ विचार किया जाता है। षोडशकारण-सोलहकारण वे सोलह बातें है जो तीर्थकर प्रकृतिका बंध करानेमें कारण मानी गई है। इसीसे इन्हें सोलह