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________________ उसके समान कोई दूसरी वस्तु आनंदप्रद नहीं दिखती" ठीक है। मनुष्य स्वभावका यह गुप्त रहस्य जिसे समझ में आनाता है उसे एक प्रकारका आश्वासन मिल जाता है और वह आत्मिक जीवनको कठिन न समझ उसके अभ्यास का प्रयत्न करता है और इसी अभ्यास के लिये जगत के निष्कारण बंधु तीर्थकरोंने इस पर्युषण पर्व का प्रचार हमारे लिये किया है / पर्दूषण पर्व-आत्मिक जीवन का अभ्यास कराने का एक पाठ है-पाठशाला है। वर्ष के तीन सौ पैंसठ दिनों तक विभावों की वायुमें चक्कर लगानेवाले मनुष्य को इन दस दिनों में स्वाभाविक जीवन का परिचय करानेके लिये इस पर्व की योजना की गई है। इन दस दिनोंमें जिस प्रकारके जीवन निर्वाह करने का मार्ग हमें बताया गया है यदि उस प्रकारका जीवन निर्वाह करनेका हमारा स्वभाव हो जाय तो हम मनुष्य कृतकृत्य हो जावें / यह हमारे पर्युषण पर्वका भाव है / अर्थात् जिन दिनोंमें हम हमारे स्वरूप का अवलोकन करनेका अभ्यास करें वह पर्युषण पर्व है। हमें इस पर्व में उन क्रियाओंको करना चाहिये जिनसे हमें अपने स्वरूपके अवलोकनमें सहायता मिले। अब देखना यह है कि क्या हम इस पर्वमें उक्त उद्देश्यकी सिद्धि करने का प्रयत्न करते हैं ? क्या हमारी क्रियाएं हमें पर्युषणके लक्ष्य बिंदुकी ओर पहुचा सकती है ! यदि पहुंचा सकती हैं तो क्या हममें ही कोई खामी है, जोकि हम क्रियाओंको करते हुए भी लक्ष्य तक नहीं पहुचते ! और यदि खामी है तो क्या ? यदि क्रियाओंमें ही खामी है तो वह क्या है ! और उसका सुधार कैसे हो सकता है ? इसे तो कोई भी
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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