________________ वही दुःख है / दुःख कोई ऐसा पदार्थ नहीं है जो कि चिपट जाता हो, परंतु अमर्यादित स्वभाववाला आत्मा मर्यादित शरीरमें रहनेके कारण स्वभाव विरुद्ध पदार्थोंकी संगतिसे दुःख का अनुभव करता है। दुःख और सुख ये दोनों कल्पना है-नाम मात्र है। अतएव दुःखसे छूटनेका उपाय स्वभावका स्मरण होना-स्वभाव में रमण होना ही है। हम पहिले ही कह आये हैं और फिर भी जोर देकर कहते है कि स्वभावमें रमण होना जितना कि हम कठिन समझ रहे है कठिन नहीं है। बात केवल यही है कि उसके अभ्यास टेव-आदत की जरूरत है / अभ्यास को दुघेट, अशक्य, दुःसाध्य जो भी समझो पर अभ्यास पड़ जाने पर अभ्यास का लक्ष्य कठिन नहीं रहता। पानी में डुबकी मारने का काम पहिले पहिले रुंध कर मरजाने के समान प्रतीत होता है पर अभ्यास पड जानेपर वही काम आनंददायक हो जाता है। योगियोंको शहरोंके भपके अच्छे नहीं लगते, जबकि एकान्त वास जोकि हमें अरुचिकर है उन्हें आनंददायी प्रतिमासित होता है / कहा जाना है कि एक शहरमें घंटाघर के पास एक पागल रहा करता था और वहा जब जब घड़ीके घटे बनते तब तब वह उन्हें गिना करता था। एक बार बड़ी बिगड़ गई और उसने घटे की आवाजें देना बंद कर दी परतु वह पागल सदा की भाति प्रति घटेपर गिनता ही रहा। इन सब बातों से मि. वेकनका यह कहना कि “जो चीज पहिले अपने को नापसंद और काठन मालूम होती है वही चीज उससे अधिक परिचित होने और अभ्यास पड़नेपर इतनी आनंददायी हो जाती है कि