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________________ अवसर पर जैसा कुछ जोश जैसा उत्साह और जैसी स्फूर्ति हममें होना चाहिये नहीं होती। पर्वोका हमारे पर कुछ असर ही नहीं पडता / और दिनोंकी भाति वे भी आते है और चले जाते हैं / उनका कुछ भी प्रभाव हमपर स्थायीरूपसे नहीं जमता / हम बराबर कई वर्षोंसे देख रहे है और सब अनुमवी पाठक देखते होंगे कि प्रतिवर्ष कुछ न कुछ उत्साह कम होता जा रहा है। जो पाच वर्ष पहिले इस पर्युषण पर्वके दिनोंमें देखा जाता था वह अब नहीं है, और यदि हमने इसका प्रयत्न नहीं किया तो विश्वास रखें कि वह समय बहुत शीघ्र आवेगा जब कि इस उत्सवकी विशेषता कुछ भी शेष न रहेगी। और यह ठीक भी है, कि जब तक किसी कार्यकी उपयोगिता सार्थकता एवं उसका भीतरी मर्म समझमे नहीं आजाता तब तक रूढीके कारण वह कार्य भले ही जनसमुदाय करे पर उतने प्रेम और जोशसे वह नहीं कर सकता जितनेसे कि वह कार्य किया जाना चाहिये / और यही कारण हमारे पर्वोकी मान्यतामें अनुत्साह उत्पन्न होनेका है। आज हम इस पुस्तक द्वारा इसी विषय पर विचार करनेका प्रयत्न करेंगे फि पर्युषण पर्वमें क्या उपयोगिता है ? वह सार्थक क्यों है ? और इस पर्वके माननेसे हमें क्या लाभ है ? पर्युषण शब्द देखनेसे तो संस्कृत भाषाका शब्द मालूम होता है पर असल में यह संस्कृत भाषाका शब्द नहीं है, किन्तु प्राकृत पज्जूषण शब्दका अपभ्रश है / पज्जपण शब्दका संस्कृतमें अनुवाद पर्युपासना होता है जिसका कि अर्थ है उत्कृष्ट उपासना-उत्कृष्ट भक्ति अथवा आत्मोपासन-आत्ममयता-आत्म
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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