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________________ पर्युषण। जैनसमाज इस पर्वको बहुत प्राचीन कालसे मानता आरहा है। मब पोंमें यह पर्व महापर्व माना जाता है। आज इस पर विचार करें कि यह पर्व क्यों मानना चाहिये / इसके मानने में यह हेतु देनेसे कि अति प्राचीन कालसे इसकी मान्यता है, अथवा लाखों मनुष्य इसे मानते है, अथवा हमारे यहा इसके माननेकी आज्ञा है इत्यादि / इस महा पर्वकी श्रेष्ठता पवित्रता एव मान्यता सिद्ध नहीं हो सकती और न जैनधर्मानुसार कोई परीक्षा-प्रधानी इन हेतुओंसे मान ही सकता है, और न जैन धर्म ही ने विना उपयोगिता व सार्थकताके किसी बातको प्रचलित की है। बात केवल यह है कि हम उन भावोंको भूल गये हैं जिनके आधारपर हमारे पाकी भित्ति खड़ी की गई थी। अब पर्वोको हमने केवल रूढिका रूप दे रखा है। अमुक दिन अमुक क्रिया ही करना चाहे उसमें हमारे परिणाम लों या नहीं दूसरी किया नहीं करना भले ही उसमें हमारे परिणाम अधिक समय तक शुम रूप क्यों न रहें-बस यही उद्देश्य हमारे पोंका रह गया है। दूसरे शब्दोंमें यों कह सकते हैं कि वर्तमानमें हमारे पर्व बिना आत्माके कलेवर रह गये हैं उनमेंसे आत्मापाका उद्देश्य-सार्थकता निकल गई है। यही कारण है कि पोंके
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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