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________________ (54) अधिक संग्रह करना ) 3 विलय ( दूसरे का द्रव्य देखकर वा सुनकर आश्चर्य करना) 1 अतिलोम ( बहुत लालच करना) 5 अतिभार ( बहुत बोझ लादना ) __ योगियों को बाह्याभ्यन्तर दोनों प्रकार की शुद्धियों का योग लिखा है, केवल एक पकार की शुद्धि से योगी नही होता / जीवो के लिए अन्तरङ्ग की शुद्धि उत्तम है क्यों कि आभ्यन्तरीय शुद्धि के विना बाह्य शुद्धि व्यर्थ है / परिग्रह महा दुःख का मूल है क्यों कि परिग्रह से काम, काम से क्रोध, क्रोध से हिंसा, हिंसा से पाप होता है और पाप से नरकगति प्राप्त होती है / इन पाचों पापों का एक देश ( स्थूलता से ) यथाशक्ति त्याग करना गृहस्थ का चारित्र है / इस को विकल चारित्र भी कहते है / श्रीशुभचन्द्राचार्य ने इन पापों के सर्वथा त्याग पर जोर दिया है क्योकि उन्हों ने अपनी पुस्तक ज्ञानार्णव मुनियों ही के लिए लिखी है जिस में मोक्ष की प्राप्ति मुख्य है और मोक्ष गृहस्थ आश्रम में प्राप्त होनी दुर्लभ है। ये पाच महाव्रत प्रथम तो महत्त्व के कारण है इसी लिए इन को गुणी पुरुष ग्रहण करते है / दूसरे ये खयं महान् है इस लिए देवता भी इन के आगे नमते हैं / तीसरे इनके अवलम्बन से अनुपम और अतीन्द्रिय सुख और ज्ञान प्राप्त होता है इस कारण इन को महाव्रत कहा है।
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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