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________________ (53) दृढ़ होती है / सत्पुरुषों की सेवा से अज्ञानरूपी अन्धकार दूर होता है और ज्ञानरूपी प्रकाश हृदयमें विराजमान होता है। योगीश्वरों का पवित्र आचरण देखकर वा सुनकर अपना आचरण भी शुद्ध हो जाता है। महात्मा योगीश्वरों की सेवा और सहवास ही से मनुष्य सांसारिक विषयभोगों से रहित होकर पूर्ण ब्रह्मचर्य को धारण कर सकता है। धन धान्यादि के त्याग को परिग्रह महाव्रत कहते हैं / मेद-परिग्रह दो प्रकार के हैं 1 बाम वा अचेतन 2 अन्तरंग वा चेतन / मुनि को इन सब का त्याग चाहिये / बाबपरिग्रह दश है 1 घर 2 खेत 3 धन ( चांदी, सोना, रुपया पैसा ) 4 धान्य (अनाज) 5 मनुष्य ( नौकर चाकर) 6 चौपाए ( पशु, हाथी, घोड़े) 7 शयनासन 8 यान ( सवारी) 9 कुप्य (सोना चादी को छोड़कर शेष धातुएँ ) 10 भाड (बर्तन आदि)। अन्तरंग परिग्रह चौदह हैं 1 मिथ्यात्व 2 स्त्री पुरुष नपुंसक वेद 3 राग 4 द्वेष 5 हास्य ( हंसी ठट्टा ) 6 रति ( अच्छी 2 वस्तु ग्रहण करने की इच्छा ) 7 अरति (बुरी वस्तुओं से दूर रहने की इच्छा ) 8 शोक 9 भय 10 जुगुप्सा (निन्दा) 11 क्रोध 12 मान 13 माया 14 लोभ / परिग्रह के अतीचार-~-१ अतिवाहन ( प्रयोजन से अधिक सवारी रखना) 2 अतिसंग्रह ( वस्तुओं का आवश्यकता से
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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