________________ (52) बशमें होकर बुद्धि, बल, धर्म, विवेक, विचार सब कुछ जाता रहता है / योगीजन ही ससार को कामामि से पीड़ित देखकर संयम में तत्पर होकर आत्मध्यान में निमग्न रहते हैं और इस प्रकार परमशक्ति को प्राप्त करते है / ब्रह्मचर्य महाव्रत में स्त्रीमात्र का सर्वथा त्याग लिखा है, पर ब्रह्मचर्याणुव्रत के अनुसार परस्त्री से सर्वथा विरक्त होना और अ. पनी स्त्री में संतोष रखना है / कुशील त्याग के पाच अतीचार हैं 1 दूसरे का विवाह करना 2 कामसेवन के अङ्गों से भिन्न अङ्गोंद्वारा कामक्रीडा करना ( अनङ्गक्रीड़ा ) 3 विटत्व- भडवचन बोलना 4 अतितृष्णा- अर्थात् अपनी स्त्री से भी काम सेवन की अत्यन्त इच्छा रखना 5 व्यभिचारिणी स्त्री के घर जाना / श्रीशुभचन्द्राचार्यजी ब्रह्मचर्य महाव्रत में वृद्धसेवा का भी वर्णन करते है / बड़ों अर्थात् गुरुजनों की सेवा करने से यह लोक और परलोक दोनों सुधरते है, भाव शुद्ध रहते है और विद्या विनयादि गुण बढते है, मानकषायों की हानि होकर चित्त प्रसन्न रहता है। वृद्धों से तात्पर्य यह है कि वे वपर पदार्थों के जाननेवाले तप शास्त्राध्ययन धैर्य ध्यान विवेक यम सयमादिक के कारण प्रशंसनीय, नैष्ठिक ब्रह्मचारी हों और केवल अवस्था से वृद्ध न हों, ऐसे वृद्धों की सेवा आत्मा का कल्याण करनेवाली उत्तम शिक्षा देनेवाली और पदार्थों का सत्य स्वरूप दिखानेवाली है। सत्पुरुषों का उपदेश और उनका सहवास अमृत के समान है। समीचीन वृत्तिवाले सत्पुरुषों की सङ्गति से प्रज्ञा बढ़ती है और सासारिक पदार्थों में आशा तृष्णा घटती है और वैराग्य और मोक्षमार्ग में बुद्धि